उत्तराखंड (उत्तर क्षेत्र) में गणपति विसर्जन करना क्यों है गलत?

 



कल गंगा जी के तट पर भ्रमण के अवसर पर अनेक समूहों को गंगा जी में गणपति जी को विसर्जित करते हुए देखकर एक  पौराणिक संदर्भ का स्मरण हुआ। सोशल मीडिया पर भी इस प्रकार के वीडियो की बाढ़ आई हुई है।जरा ध्यान दें- 
"शिव महापुराण एवं स्कंद पुराण के कथानकों के अनुसार भगवान शंकर ने गणपति और कार्तिकेय जी की बौद्धिक परीक्षा को ध्यान में रखते हुए संपूर्ण भूमंडल की परिक्रमा का आदेश किया और कहा कि जो इस परीक्षा को शीघ्रता से उत्तीर्ण करेगा उसी का विवाह पूर्व में हो जाएगा।कार्तिकेय जी तो मयूर पर आरूढ़ होकर के यात्रा पर निकल पड़े किंतु गणपति जी ने माता-पिता की परिक्रमा करके अपनी बौद्धिकता को सिद्ध किया।वे विवाहित हो गए और रिद्धि सिद्धि के अधिपति बन गए।किंतु इस सिद्धांत से असहमत होकर के कार्तिकेय भगवान सदा के लिए ब्रह्मचर्य का संकल्प लेकर दक्षिण क्षेत्र में चले गए।अस्तु भगवान शिव ने दक्षिण क्षेत्र का अधिपति कार्तिकेय जी को बनाया और उत्तर क्षेत्र का अधिपति भगवान गणेश जी को बना दिया।और साथ ही गणेश जी को यह आदेश प्रदान किया कि तुम्हारे जन्म दिवस से लेकर कुछ दिन तुम दक्षिण क्षेत्र में अपने भैया कार्तिकेय के पास प्रत्येक वर्ष रहोगे।इसलिए दिव्य रूप में निरंतर गणेश जी गणेश चतुर्थी को दक्षिण क्षेत्र की यात्रा पर जाते हैं और चतुर्दशी को पुनः अपने क्षेत्र में स्थित हो जाते हैं।अतःप्रतीकात्मक रूप में वहां के लोग गणेश चतुर्थी को उनका आवाहन कर उनसे ऊर्जा ग्रहण करते हैं और उसके पश्चात विसर्जन करते हैं।(ध्यान रहे विसर्जन का अर्थ केवल नदी अथवा जल में बहाना नहीं बल्कि सम्मानपूर्वक पूजा करके वापस भेजना भी होता है।) तो जब गणेश जी कि दक्षिण से विदाई होती है तो वह पुनःउत्तर क्षेत्र में आ जाते हैं। इसलिए आवाहन और विसर्जन का सिद्धांत दक्षिण क्षेत्र पर तो तार्किक रूप से लागू होता है। किंतु यदि अब उत्तर वाले भी विसर्जन कर देंगे तो गणेश जी कहां जाएंगे।  जानकारी के अभाव में सभी क्षेत्रों में भेड़ चाल हो रही है। और सभी जगह सिद्धांत संक्रमित हो गए हैं। अतः सभी से प्रार्थना है कि उत्तर भारतीय लोग इस प्रकार से आवाहन विसर्जन की प्रक्रिया से बचें!क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का घर गणेश जी का निवास स्थान ही है।अथवा सभी के घर में गणेश जी का नित्य निवास है

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